आजाद हुए हम सालों पहले, लेकिन क्या सच में आजादी है यहीं?
पहले जो थे गुलाम हम, अब भी है हम गुलाम वही।
क्या फर्क है तब में और अब में, जब कर रहे गुजर भीख मांगकर ही।
वह गरीब जो भीख मांगता, कहलायेगा तो आखिर गुलाम ही।
काहे की आजादी पाई उसने, जब करता वो गुजर बसर यूहीं।
क्यों नही मिलता उसके बच्चों को भोजन, क्यों उनको शिक्षा का अधिकार नहीं।
गरीबी, लाचारी, भ्रष्टाचार की बेडियों में, वो रह जाता है कैद कहीं।।
उस युग में उठे थे हाथ कई, तब जल पाई थी क्रान्ति की ज्योत कहीं।
निडरता उनकी नस नस में थीं, शायद था अंतर उनमें बस एक यहीं।
उज्ज्वल हो भविष्य हमारे अपनो का शायद थी उन्ही की ये चाह बड़ी।
नहीं चाहते थे वो ऐसा हो, कहीं सहनी पडे हमें भी कैद वही।
कर गये वो जो कर सकते थे, दिलवाई थी आज़ादी उन्होंने ही।
इस आजादी का बोझ था बड़ा भारी, न्यौछावर हुई थी इसमें जानें कई।
अगर देख पाएं हम आज अपना, तो दिल में कौंधता बस प्रश्न यहीं,
आजाद हुए हम सालों पहले, लेकिन क्या सच में आजादी है यहीं?
आओं तोडें इन जन्जीरों को हम, मिल-जुलकर करें शुरुआत नई।
आज उठायें कलम मिलकर हम तुम और लिखें भविष्य की तकदीर नई।
कर शिक्षा प्रदान हर बच्चें को, तैयार करें देश की नींव नई,
अज्ञानता, निर्धनता जैसे शब्दों को, मिटा दें भारत के शब्दकोष से ही।
दें सुशिक्षा, संस्कार नई पीढ़ी को, समझाये उनको बस तर्क यही।
कर नियंत्रण स्थापित खुद पर, भ्रष्टाचार को मिटाये जड़ से ही।
कर संबल प्रदान जरूरतमंदो को, आओं करें कायम मिसाल नई।
आओं अलख जगायें हम मिलकर और राष्ट्र उन्नति में भागी बनें।
इस स्वतंत्रता दिवस पर ये प्रण करके, करें प्रदान देश को आजादी ये नई।।
जय हिन्द!! जय भारत!!!
- उपेन्द्र चौबे, बान्दीकुई।
wah wah
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